Sunday, May 19th, 2024

आइआइटी मुंबई के प्रोफेसर बोले 50 से अधिक न हो एक्यूआइ, भोपाल का 334 पर पहुंचा

भोपाल
किसी भी शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 50 से अधिक नहीं होना चाहिए। एक्यूआइ का बढ़ाना मानवीय जीवन के लिए कई तरह के दुष्प्रभाव छोड़ता है। प्रकृति को भी नुकसान पहुंचता है। यह बात एनर्जी स्वराज्य मिशन के प्रसिद्ध एनर्जी विशेषज्ञ व आइआइटी मुंबई के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने सोमवार भोपाल में कही। प्रोफेसर सोलंकी जिस समय बोल रहे थे उसी समय भोपाल शहर में वायु प्रदूषण उच्च स्तर पर था। शहर का एक्यूआइ 334 रिकार्ड किया गया। हवा में धूल, गैस, धुआं का स्तर बना हुआ है। जब भी नमी का स्तर बढ़ता है तो ये कण भारी हो जाते हैं और इनका स्तर निचली सतह पर बढ़ जाता है इस वजह से एक्यूआइ भी बढ़ता है। प्रोफेसर सोलंकी मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उनके साथ बिजली कंपनी के एमडी विशेष गढ़पाले व अन्य इंजीनियर थे। प्रोफेसर सोलंकी वर्तमान में मप्र में सोलर एनर्जी के क्षेत्र में राज्य शासन द्वारा नियुक्त ब्रांड एम्बेसेडर हैं।

प्रोफेसर सोलंकी ने कहा कि सोलर एनर्जी के उपयोग को जन आंदोलन बनाना होगा। ऐसा करके हम सोलर ऊर्जा की तरफ शिफ्ट होंगे तो कोयला आधारित बिजली से पीछा छूट जाएगा। परंपरागत ईधनों का उपयोग बचेगा। ग्रीन टेक्नोलॉजी की तरफ बढ़ना होगा। इस दिशा में काम तो किया जा रहा है लेकिन और तेजी से काम करने की जरूरत है। तभी कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं। चेतन सिंह सोलंकी ने कहा कि दुनिया 21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रही है। यह दशक तय करेगा कि पृथ्वी के समक्ष मौजूदा संकटों और चुनौतियों से निपटने में हम कितने समर्थ हो पाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग-जलवायु परिवर्तन रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। परंपरागत ईंधनों के अंधाधुंध उपयोग और औद्योगिक गतिविधियों के कारण कार्बन उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेरिस समझौते के अंतर्गत तमाम कामों के बावजूद कार्बन फुटप्रिंट कम नहीं हुआ है। कार्बन के इस बोझ को ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाकर कम किया जा सकता है। इस संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्त्रोत सोलर एनर्जी है। सोलर एनर्जी के बढ़ावे से बहुत हद तक कार्बन फुटप्रिंट कम किया जा सकता है।

प्रोफेसर सोलंकी ने कहा कि देश में 40 फीसद वन क्षेत्र कम हो गया है। यह ठीक नहीं है। इसका बचाव सोलर एनर्जी को बढ़ावा देकर किया जा सकता है। हमें पर्यावरण को सुधारने के लिए बड़े स्तर पर मिलकर काम करने की जरुरत है।

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